बिहार विधानसभा का मॉनसून सत्र एक बार फिर विवादों और तीखी बहसों की भेंट चढ़ गया। बुधवार को मतदाता सूची पुनरीक्षण अभियान को लेकर शुरू हुआ सवाल-जवाब का सिलसिला जल्द ही हंगामे में बदल गया। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच तीखे आरोप-प्रत्यारोप, असंसदीय भाषा और आक्रामक तेवरों ने सदन की गरिमा को गंभीर रूप से प्रभावित किया।

जब विधानसभा अध्यक्ष और उपमुख्यमंत्री आमने-सामने हुए

हंगामे की शुरुआत उस समय हुई जब उपमुख्यमंत्री विजय कुमार सिन्हा विपक्षी सदस्य भाई वीरेंद्र की टिप्पणी पर आक्रोशित हो गए। स्थिति इतनी बिगड़ गई कि विधानसभा अध्यक्ष नंद किशोर यादव को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन्होंने सख्त लहजे में उपमुख्यमंत्री से कहा:- “आप मंत्री हैं, सदन मैं चलाऊंगा या आप?” बावजूद इसके, सत्ता पक्ष के सदस्य शांत नहीं हुए, जिससे नाराज होकर अध्यक्ष ने सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी।

असंसदीय टिप्पणी बनी विवाद की जड़

तेजस्वी यादव को बोलने का मौका दिए जाने के तुरंत बाद राजद विधायक भाई वीरेंद्र की टिप्पणी से मामला और बिगड़ गया। सत्ता पक्ष के सदस्य भड़क उठे और सदन में नारेबाजी शुरू हो गई। अध्यक्ष ने स्पष्ट किया कि जब तक माफी नहीं मांगी जाती, किसी को बोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी।

महत्वपूर्ण विधेयक बिना चर्चा पारित

विपक्ष के हंगामे और गैरहाजिरी के बीच दोपहर बाद सदन की कार्यवाही फिर शुरू हुई और कई विधेयक ध्वनिमत से पारित कर दिए गए। यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया की दृष्टि से गंभीर सवाल खड़ा करता है।

विधान परिषद में भी चला हंगामा: 25 मिनट में स्थगित हुई कार्यवाही

बिहार विधान परिषद में भी स्थिति कुछ अलग नहीं रही। केवल 7 मिनट चली पहली पाली और फिर दोपहर 12:07 पर कार्यवाही स्थगित कर दी गई। विपक्षी दलों ने काले कपड़े पहनकर वेल में जाकर जमकर नारेबाजी की, जबकि सभापति अवधेश नारायण सिंह की शांति की अपीलें अनसुनी रहीं।

विपक्ष के हाथ में तख्तियां, सत्ता पक्ष का पलटवार

विपक्ष के हाथों में “वोट की चोरी बंद करो” जैसे नारों वाली तख्तियां थीं, जबकि सत्ता पक्ष ने उन्हें जातीय गणना के मुद्दे पर भ्रम फैलाने का दोषी बताया। नतीजतन सदन में फिर नारेबाजी शुरू हो गई और पहली पाली की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
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