
पूर्व में शिकारपुर विधानसभा के नाम से जाना जाने वाला यह क्षेत्र परिसीमन 2008 के बाद नरकटियागंज के रूप में सामने आया. इससे भी अधिक रोचक तथ्य यह है कि मतदाताओं को आजादी के बाद पहली बार एक साथ दो-दो विधायकों को चुनने का अवसर मिला, जो अपने आप में लोकतंत्र की जीवंतता को दर्शाता है. आजादी के बाद हुए पहले 1952 के विधानसभा चुनाव में तब के शिकारपुर विधानसभा क्षेत्र से पहली बार रघुनी बैठा और विश्वनाथ सिन्हा एक ही विधानसभा से चुनकर अविभाजित बिहार विधानसभा के सदस्य बने. बिहार की राजनीति में नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र एक अनोखा उदाहरण पेश करता है, जहां न केवल नाम और सीमाएं बदली, बल्कि नेताओं और दलों का वर्चस्व भी समय-समय पर बदलता रहा. वर्ष 2010 में अस्तित्व में आये इस क्षेत्र का राजनीतिक इतिहास जितना दिलचस्प है, उतना ही सामाजिक दृष्टिकोण से भी समृद्ध रहा है.
नामाकरण और परिसीमन की जटिलता
नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र पहले शिकारपुर विधानसभा के नाम से जाना जाता था. परिसीमन के बाद वर्ष 2010 में इसका नाम बदल गया और इसे वर्तमान स्वरूप मिला. यही नहीं, इस क्षेत्र की आरक्षण की स्थिति भी समय-समय पर परिवर्तित होती रही- कभी अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित तो कभी सामान्य वर्ग के लिए खुला. यह अपने आप में दर्लभ उदाहरण है जब एक ही निर्वाचन क्षेत्र ने इतनी विविध राजनीतिक परिस्थितियों का सामना किया हो.
सतीश चंद्र दूबे के इस्तीफे से मिला रश्मि वर्मा को मौका
इस विधानसभा क्षेत्र से एक टर्म के अंदर दो विधायक चुने गये. वर्ष 2010 के विधानसभा चुनाव में सतीश चंद्र दूबे यहां से विधायक निर्वाचित किये गये . जब बिहार की लोकसभा चुनाव 2014 में बिहार के सभी राजनीतिक दलों ने बिना गठबंधन के चुनावी मैदान में उतरे तो भाजपा ने सतीश चंद्र दूबे को वाल्मीकिनगर लोकसभा क्षेत्र से अपना प्रत्याशी बनाया. वे लोकसभा चुनाव जीत गये और विधानसभा की सीट खाली हो गयी. जब उप चुनाव कराया गया तो रश्मि वर्मा को भाजपा ने अवसर दिया और वह पहली बार विधानसभा सदस्य चुन ली गयी.
वर्तमान राजनीतिक परिदृष्य और भाजपा का वर्चस्व
वर्तमान में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व भाजपा की रश्मि वर्मा कर रही है, जो उप चुनाव, फिर 2020 के आम चुनाव में विजयी रहीं. हालांकि 2015 में उन्हीं के परिवार के सदस्य और कांग्रेस के विनय वर्मा ने यहां से जीत की थी, परंतु भाजपा ने 2020 में अपनी पुरानी स्थिति को फिर से बहाल कर लिया. यह दर्शाता है कि यह सीट अत्यधिक प्रतिस्पर्धी है और मतदाता बदलाव को लेकर सजग हैं. आगामी 2025 के चुनावों को लेकर रश्मि वर्मा एक फिर से सक्रिय हैं और तैयारी में जुटी हैं.
भोलाराम तूफानी की भूमिका और क्रांतिकारी इतिहास
राजनीति के साथ-साथ नरकटियागंज क्षेत्र का स्वतंत्रता आंदोलन में भी गहरा योगदान रहा है. जानकारों का कहना है कि भोला राम तूफानी इस क्षेत्र की उस विरासत का प्रतिनिधित्व करते थे, जिन्होंने भगत सिंह की फांसी से प्रेरणा लेकर ब्रिटिश सरकार के खिलाफ लड़ाई छेड़ी थी. उन्हें पहले फांसी की सजा सुनाई गयी, लेकिन साक्ष्य के आभाव में वह कालापानी की सजा में तब्दील हुई. उनका तूफानी नाम जो उनको अदालत में ब्रिटिश जज को जवाब देते हुए पाया था, आज भी दलित चेतना और साहस का प्रतीक बना हुआ है.
जब लालू प्रसाद ने उनको पहली बार हेलीकॉप्टर से भेजा
भोलाराम तूफानी लालू प्रसाद की सरकार में पशुपालन मंत्री बनाया गया था, एक वाकया हाल ही में लालू प्रसाद ने सुनाया था और बताया था कि कैसे उन्होंने पहली बार तूफानी को हेलीकॉप्टर से नरकटियागंज भेजवाया था. लालू प्रसाद ने बताया कि जब तूफानी वहां से लौटकर आये तो कहा कि क्षेत्र की जनता कह रही है कि उनको ललुआ मंत्री बना दिया और अब ऊपर से मूतवावता. हालांकि उनका नाम चारा घोटाला में भी आया था. इससे यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक परिवर्तन के प्रतीकों को सत्ता की गलियारों में स्थान तो मिला, लेकिन भ्रष्टाचार के आरोपों से वे भी अछूते नहीं रहे.
बागी तेवर और भागीरथी देवी का सफर
इस क्षेत्र की राजनीति में महिला नेतृत्व की भी अहम भूमिका रही है. भागीरथी देवी इसका सशक्त उदाहरण हैं. एक समय की सफाई कर्मी और महज 800 रुपये प्रति माह कमानेवाली महिला ने राजनीति में कदम रखा और पांच बार विधायक बनीं. उन्होंने न सिर्फ नरकटियागंज बल्कि रामनगर से भी जीत दर्ज की. वह महादलित समुदाय की आवाज बनी और जेल तक जाने से भी नहीं झिझकीं.
उनका राजनीतिक जीवन संघर्ष, बगावत और आत्म सम्मान से भरा रहा है. जब पार्टी में उनकी उपेक्षा हुई तो उन्होंने 2022 में भाजपा के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया और कहा कि महादलित होने के कारण उनकी बात सुनी नहीं जाती. हालांकि, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को वह भगवान के समान मानती रही है. यह विरोधाभास उनके व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन की जटिलताओं को दर्शाता है.
निष्कर्ष : लोकतंत्र का जीवंत उदाहर
नरकटियागंज विधानसभा क्षेत्र का इतिहास राजनीतिक उठापटक का नहीं बल्कि सामाजिक परिवर्तन, दलित सशक्तीकरण, महिला नेतृत्व, स्वतंत्रता संग्राम की विरासत और लोकतांत्रिक चेतना का संगम रहा है. यहां के मतदाता न केवल सजग हैं बल्कि उन्होंने समय-समय पर बदलाव को गले लगाया है.