अब स्कूल के बच्चे तकनीक की मदद से न सिर्फ पेड़-पौधों को पहचानेंगे, बल्कि उनके बारे में पूरी जानकारी भी देंगे। इसके लिए वे खास तरह का क्यूआर कोड तैयार करेंगे, जिसे स्कैन करते ही उस पौधे की जानकारी मोबाइल पर एक क्लिक में मिल जाएगी। इस पेड़ का नाम गुलमोहर है, इसके फूल गर्मियों में खूब खिलते हैं और इसकी छांव सबसे ठंडी लगती है!” – इसी तरह की जानकारी के लिए अपने मोबाइल से  क्यूआर कोड, स्कैन करते ही सामने उस पेड़ की पूरी कहानी सामने आ जायेगी। अब बिहार के स्कूलों में विद्यार्थी इन दिनों स्कूल में सिर्फ किताबों से नहीं, पेड़ों से भी पढ़ाई कर रहे हैं। वो भी क्यूआर कोड की मदद से।

पृथ्वी दिवस का खास तोहफा

22 अप्रैल से शुरू हो रहे पृथ्वी दिवस सप्ताह के तहत राज्य भर के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में एक खास पहल शुरू हो रही है। बच्चों को पेड़-पौधों के बारे में सिर्फ नाम नहीं, उनके औषधीय गुण, पर्यावरणीय महत्व और उपयोग भी जानने को मिलेंगे।

बच्चे खुद बनेंगे जानकारी के निर्माता

हर स्कूल में बने इको क्लब और यूथ क्लब के बच्चे अब पेड़ों के “डिजिटल दोस्त” बन गए हैं। वे स्कूल परिसर और आस-पास के पार्कों में लगे पौधों की तस्वीरें लेंगे, उनकी प्रजाति पहचानेंगे, उनके बारे में जानकारी इकट्ठा करेंगे और फिर उस जानकारी से बनाएंगे एक क्यूआर कोड।

हर पौधा बोलेगा – मुझे स्कैन करो!

इन क्यूआर कोड को लेमिनेट करके पौधों पर चिपकाया जाएगा। जब कोई उसे मोबाइल से स्कैन करेगा, तो उस पौधे का नाम, विशेषता, उपयोग, और औषधीय गुण मोबाइल स्क्रीन पर आ जाएगा।

नवाचार के साथ तकनीक की दोस्ती

“बच्चों को पर्यावरण से जोड़ने के लिए हमें कुछ नया करना था,” इस अभियान से “अब विद्यार्थी न सिर्फ पेड़ पहचानते हैं, बल्कि उन्हें समझते भी हैं। और सबसे बड़ी बात – वे तकनीक का सही इस्तेमाल करना सीख रहे हैं।”

ऑनलाइन ट्रेनिंग और हर दिन समाधान

बच्चों और शिक्षकों को इस काम के लिए ऑनलाइन प्रशिक्षण दिया गया है। जिला शिक्षा पदाधिकारी संजय कुमार बताते हैं, “हर दिन सुबह 9 से 10 बजे तक ऑनलाइन बैठक होती है, जिसमें अगर किसी स्कूल को तकनीकी समस्या है, तो उसका तुरंत समाधान किया जाता है।”

शिक्षा अब सिर्फ दीवारों तक सीमित नहीं

इस पहल के ज़रिए पढ़ाई अब क्लासरूम की दीवारों से बाहर निकलकर पेड़ों के तनों तक पहुँच गई है। बच्चे मोबाइल, टैब और लैपटॉप के ज़रिए प्रकृति की किताब पढ़ रहे हैं – जो न कभी पुरानी होती है, न कभी बंद होती है।

बच्चों की नजर में पेड़ अब सिर्फ पेड़ नहीं

“पहले तो पेड़ दिखते थे, अब पेड़ समझ आते हैं,” मुस्कुराते हुए कहती है कक्षा 7 की छात्रा रूबी। “मुझे नीम के पेड़ का क्यूआर कोड बनाना था, तब जाकर पता चला कि उसके पत्ते कितने औषधीय होते हैं।”

इस पहल से तीन बड़े फायदे मिलेंगे

1. विद्यार्थियों का प्रकृति से रिश्ता मजबूत हो रहा है।
2. तकनीकी ज्ञान में निखार आ रहा है।
3. रचनात्मकता और टीमवर्क जैसी खूबियां भी उभर रही हैं।
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