बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के वाल्मीकिनगर, भिखना ठोड़ी, और मंगुराहान जैसे स्थल पर पहुंचकर बिहार के समृद्ध प्राकृतिक और सांस्कृतिक धरोहर की झलक मिलती है। नये साल पर ये स्थान  पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र बनते हैं। यहां की प्राकृतिक सुंदरता, शांत वातावरण, और अद्वितीय अनुभव इसे एक आदर्श पर्यटन स्थल भी बनाता है। इन तीनों स्थलों का चयन नये साल मनाने के लिए इसलिए भी खास है क्योंकि ये शहरी हलचल से दूर, प्रकृति की गोद में हैं। इन स्थानों पर पर्यावरण-अनुकूल पर्यटन (Eco-Tourism), स्थानीय संस्कृति, और जैव विविधता के संरक्षण को बढ़ावा दिया जा रहा है।

वाल्मीकिनगर

यह स्थल अपनी जैव विविधता और वन्यजीव पर्यटन के लिए प्रसिद्ध है। गंडक नदी के किनारे स्थित यह स्थल प्राकृतिक सौंदर्य और शांत वातावरण का अनूठा संगम है। नये साल के मौके पर यहां एडवेंचर गतिविधियों जैसे ट्रेकिंग, कैम्पिंग, और वाइल्डलाइफ सफारी का मज़ा लिया जा सकता है। वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व शिवालिक रेंज के दामन में स्थित वाल्मीकिनगर टाइगर रिजर्व भारत के 53 टाइगर रिजर्व में से एक है। यह क्षेत्र बंगाल टाइगर, हाथी, हिरण और कई दुर्लभ पक्षियों के लिए प्रसिद्ध है। गंडक बैराज यहां का प्रमुख आकर्षण है, जहां पर्यटक बोटिंग और पिकनिक का आनंद लेते हैं।
कैसे पहुंचे
बिहार की राजधानी पटना से बस या टैक्सी के माध्यम से वाल्मीकिनगर पहुंचा जा सकता है. इसके लिए पर्यटन विभाग द्वारा भी परिवहन सहित ठहरने की ऑनलाइन बुकिंग की जाती है.

भिखना ठोड़ी

हिमालय की गोद में बसा प्राकृतिक स्थल सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। नये साल के समय यहां की लोककला, परंपराएं और स्थानीय व्यंजन पर्यटकों के बीच खास आकर्षण पैदा करते हैं। साथ ही, यह स्थल अपने शांत और हरे-भरे माहौल के लिए भी जाना जाता है। यह स्थल न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए, बल्कि सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए भी जाना जाता है। शिवालिक की तलहटी में स्थित यह स्थान शांत वातावरण और स्थानीय लोककला के लिए खास पहचान रखता है।
कैसे पहुंचें
यहां जाने के लिए पटना, गोरखपुर से रेलगाड़ी के माध्यम से नरकटियागंज पहुंचा जा सकता है. इसके बाद वहां से लोकल ट्रेन या निजी वाहन से यात्रा कर भिखनाठोड़ी पहुंचा जा सकता है.

मंगुराहान

इसे अक्सर “बिहार का गुप्त प्राकृतिक खजाना” कहा जाता है, अपनी शांत झीलों और हरियाली के लिए प्रसिद्ध है। यहां नये साल के जश्न के लिए बोटिंग और पिकनिक जैसी गतिविधियां लोकप्रिय हैं। यह स्थल परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने के लिए उपयुक्त है। थारू जनजनाति को यहां सबसे करीब से देखा जा सकता है. इनकी खास सांस्कृतिक विशेषता है. मंगुराहान, पश्चिमी चंपारण का एक अद्वितीय स्थल है, जो झीलों, हरियाली, और शांतिपूर्ण वातावरण के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र शिवालिक रेंज की विशिष्टताओं को दर्शाता है और पारिवारिक पिकनिक के लिए उपयुक्त है। मंगुराहा वीटीआर का पूर्वी प्रवेश बिंदु है जो अपने वन्यजीवों और सुंदर घास के मैदानों के लिए जाना जाता है, मंगुराहा अपने लालभिटिया सूर्यास्त बिंदु के लिए भी प्रसिद्ध है जहां हम खूबसूरत साल के जंगल की तीन मंजिलें देख सकते हैं। यह स्थान ‘भितिहरवा गांधी आश्रम’ और ‘रामपुरवा अशोक स्तंभ’ के लिए ऐतिहासिक महत्व रखता है। ‘सहोदरा’ और सोफा मंदिर इस स्थान के बहुत निकट हैं और स्थानीय ‘थारू’ जनजातियों के लिए धार्मिक महत्व रखते हैं।

प्राकृति के गोद में बसे चंपारण के पर्यटन स्थल

भारत की समृद्ध भूगोल और संस्कृति में शिवालिक रेंज और पश्चिमी चंपारण क्षेत्र का विशेष स्थान है। यह क्षेत्र न केवल अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है, बल्कि ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय महत्व के लिए भी जाना जाता है। खासकर वाल्मीकिनगर, भिखनाठोड़ी, और मंगुराहान जैसे स्थल शिवालिक पर्वतमाला की गोद में स्थित हैं, जो इसे बिहार के प्रमुख पर्यटक स्थलों में शामिल करते हैं।

शिवालिक रेंज का महत्व

शिवालिक पर्वत हिमालय की सबसे निचली श्रेणी है, जो घने जंगलों, समृद्ध जैव विविधता, और सुंदर परिदृश्यों के लिए प्रसिद्ध है। यह रेंज पश्चिमी चंपारण जिले में अपनी उपस्थिति दर्ज कराती है, जहां की हरियाली और वन्य जीवन इसे विशेष बनाते हैं। गंडक नदी इस क्षेत्र की जीवनरेखा है, जो यहां की जैव विविधता को समृद्ध करती है।

पश्चिमी चंपारण: इतिहास और प्रकृति का अनूठा मेल

पश्चिमी चंपारण न केवल अपने ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता इसे अद्वितीय बनाती है। यह क्षेत्र महात्मा गांधी के चंपारण सत्याग्रह से जुड़ा है, जिसने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक नया आयाम जोड़ा। इसके अलावा, यहां की शिवालिक पहाड़ियां, घने जंगल, और वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।
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