पश्चिम चंपारण जिले का लौरिया विधानसभा क्षेत्र बिहार की राजनीति में एक अनोखा स्थान रखता है। यहां की पहचान गन्ना किसानों, ऐतिहासिक संघर्षों और राजनीतिक विविधताओं से जुड़ी हुई है। लेकिन बीते एक दशक में एक नाम इस क्षेत्र की पहचान बन चुका है—विनय बिहारी। तीन बार विधायक चुने जा चुके विनय बिहारी केवल एक राजनेता नहीं, बल्कि एक जन-भावनाओं से जुड़े कलाकार भी हैं। उनकी लोकप्रियता का दायरा केवल लौरिया तक सीमित नहीं है, बल्कि देश-विदेश के भोजपुरी भाषियों से लेकर सिने-प्रेमियों के दिल तक फैला हुआ है।

पश्चिम चंपारण के गन्ने की मिठास जितनी मशहूर है, उतनी ही दिलचस्प है इस ज़िले की लौरिया विधानसभा की राजनीतिक कहानी। लेकिन लौरिया की राजनीति में एक नाम ऐसा है, जिसने सत्ता और संवेदना के बीच की दूरी मिटा दी है वह है —विनय बिहारी। तीन बार विधायक, कभी गीतकार, कभी फिल्म निर्देशक और आज लोगों की आंखों में बसने वाला जननायक। यह कहानी सिर्फ एक चुनावी जीत की नहीं है। यह उस रिश्ते की बात है, जो एक नेता और जनता के बीच भावनाओं, संगीत और भरोसे की डोर से जुड़ा हो।

जहां नेता पहले से ही सुपरस्टार था

लौरिया के लोग बताते हैं, “विनय बिहारी के गाने तब भी सुनते थे, जब वो नेता नहीं थे। अब वो हमारे गाँव आते हैं, तो ऐसा लगता है जैसे कोई अपना आया हो।” बात सच्ची है। विनय बिहारी भोजपुरी फिल्मी दुनिया का जाना-पहचाना नाम रहे हैं। उनके लिखे गीतों में गांव की खुशबू, पीड़ा और उम्मीदें झलकती हैं। शायद यही कारण रहा कि जब उन्होंने राजनीति में कदम रखा, तो लोगों ने उन्हें केवल ‘नेता’ नहीं समझा, उन्हें ‘अपनों’ की तरह पनाया।

लोकप्रियता का आधार: केवल राजनीति नहीं, भावनात्मक जुड़ाव

विनय बिहारी की लोकप्रियता को केवल चुनावी आंकड़ों से नहीं मापा जा सकता। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत एक भोजपुरी गीतकार, फिल्म निर्माता और निर्देशक के तौर पर की थी। उनकी रचनाएं आम जनता के जीवन, संघर्ष, प्रेम और उम्मीदों को दर्शाती थीं। यही कारण है कि जनता के बीच उनके प्रति एक भावनात्मक जुड़ाव विकसित हुआ—जो राजनीति में उनके प्रवेश से पहले ही बन चुका था।
लौरिया के गाँव-गाँव में आज भी लोग उनके गीत गुनगुनाते हैं, जिससे यह स्पष्ट होता है कि उनके लिए जनप्रियता केवल वोट पाने का साधन नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है। जब एक नेता लोगों की बोलियों, गीतों और संघर्षों में दिखाई देता है, तब वह केवल ‘विधायक’ नहीं, ‘अपना आदमी’ बन जाता है।

गन्ना किसान और लौरिया मिल: उम्मीद और हताशा की कहानी

लौरिया की पहचान उसके गन्ना किसानों से है। सुबह की ओस से भीगे खेत, ट्रॉली में लदे गन्ने और मिल के गेट पर खड़े इंतज़ार करते किसान—यह यहाँ की रोजमर्रा की तस्वीर है। लेकिन जिस लौरिया चीनी मिल को किसान अपने जीवन का आधार मानते हैं, वह कई बार प्रशासनिक उपेक्षा और तकनीकी समस्याओं से जूझती रही है।
यही वह बिंदु है जहाँ एक जनप्रतिनिधि की भूमिका महज फाइलों तक नहीं रहती। विनय बिहारी कई बार किसानों के मंचों पर दिखे, कभी उनके खेतों में, तो कभी पंचायतों में। उनके गीतों में ‘किसान’ कभी किरदार नहीं रहा, बल्कि आत्मा रहा। लौरिया की सामाजिक-सांस्कृतिक पहचान गन्ना किसानों से जुड़ी है। यहाँ की प्रमुख आर्थिक रीढ़ है गन्ना उत्पादन, और इसके सहारे ही हजारों परिवारों की आजीविका चलती है।
किंतु, औद्योगिक दृष्टि से देखा जाए तो क्षेत्र में केवल एक प्रमुख उद्योगिक संस्था है—लौरिया चीनी मिल। वर्षों से यह मिल किसानों के लिए एक उम्मीद की किरण रही है, लेकिन इसके संचालन में आनेवाली समस्याओं ने कई बार हताशा भी फैलाई है। ऐसे में एक जनप्रतिनिधि की भूमिका केवल नीतिगत निर्णयों तक सीमित नहीं रहती; उसे किसानों की भावनाओं और चुनौतियों को समझना होता है। विनय बिहारी इस भूमिका में अपेक्षाकृत सफल दिखते हैं—वे अक्सर किसानों से संवाद करते हैं, उनके गीतों में ग्रामीण जीवन की पीड़ा और जिजीविषा को स्वर देते हैं, जिससे उनकी राजनैतिक छवि एक सामाजिक संवेदनशीलता से भर जाती है।

राजनीतिक विविधता और लोकतंत्र का विकास

लौरिया विधानसभा की राजनीति का इतिहास भी बेहद विविधतापूर्ण रहा है। आज़ादी के बाद 1957 में यहाँ से कांग्रेस के शुभनारायण प्रसाद विधायक बने थे। इसके बाद कई दलों ने इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बनाई। इस विविधता को देखकर यह साफ़ होता है कि लौरिया के मतदाता किसी पार्टी या व्यक्ति विशेष से स्थायी रूप से बंधे नहीं हैं—वे बदलाव को स्वीकारते हैं, और प्रदर्शन के आधार पर नेताओं को चुनते हैं। विनय बिहारी का तीन बार चुना जाना इसलिए विशेष बन जाता है, क्योंकि यह सिर्फ पार्टी के नाम पर नहीं, उनके व्यक्तिगत जुड़ाव और कार्यों के कारण हुआ है। विशेष रूप से 2020 के चुनाव में उन्हें 77,927 वोट मिले—जो इस क्षेत्र के इतिहास में सबसे अधिक है। यह आंकड़ा केवल एक राजनीतिक जीत नहीं, बल्कि एक सामाजिक स्वीकृति है।

परिसीमन और पहचान का विस्तार

2008 के परिसीमन के बाद लौरिया विधानसभा क्षेत्र का विस्तार हुआ। इसमें योगापट्टी प्रखंड की सभी ग्राम पंचायतों और लौरिया प्रखंड की कई पंचायतों को शामिल किया गया। इससे क्षेत्र की जनसंख्या, सामाजिक संरचना और मुद्दों में भी विविधता आई। एक जनप्रतिनिधि के रूप में इस विविधता को समेटना और सभी वर्गों की समस्याओं को समझना और हल करना—विनय बिहारी के लिए एक चुनौती भी रही और अवसर भी।
कई क्षेत्रों में सड़कों, विद्यालयों और स्वास्थ्य सुविधाओं के विकास की जरूरत आज भी महसूस की जाती है। लेकिन उनके प्रयासों को लेकर स्थानीय जनता में यह धारणा है कि विनय बिहारी एक ‘जुड़ाव वाले नेता’ हैं—जो केवल चुनावी वक्त में नहीं, बल्कि सामान्य दिनों में भी जनता के बीच रहते हैं।

एक जननायक की छवि: गीतों से विधानसभा तक

विनय बिहारी की छवि एक जननायक जैसी बन चुकी है। एक ऐसा नेता जो मंच पर भाषण देने के साथ-साथ लोगों के बीच बैठकर गीत भी गाता है, त्योहारों में शामिल होता है, और सामाजिक आयोजनों में बढ़-चढ़कर भाग लेता है। इस व्यवहारिकता ने उनकी लोकप्रियता को कई स्तरों पर मजबूत किया है। युवा हो या बुजुर्ग, महिलाएँ हों या किसान—हर वर्ग में उनका कुछ न कुछ योगदान रहा है, जिससे वे सभी के लिए ‘अपने’ लगते हैं।

बोली-बानी में बसता है भरोसा

विनय बिहारी के भाषणों में शुद्ध राजनीतिक जुमले नहीं होते। वो बोलते हैं जैसे कोई बड़ा भाई समझा रहा हो। उनकी भोजपुरी शैली, लोक गीतों की बुनावट और सरल प्रस्तुति उन्हें भीड़ से अलग खड़ा करती है। वे जब मंच से गाना गुनगुनाते हैं—तो जनता ताली नहीं, भरोसा बजाती है। इस शैली ने उन्हें एक अनोखा राजनेता बना दिया है—जो केवल नीतियां नहीं बनाता, रिश्ते बनाता है।

एक चेहरा, कई पहचानें

विनय बिहारी को अगर आप किसी पंचायत भवन में देख लें, तो लगेगा कोई सामाजिक कार्यकर्ता हैं। किसी भोजपुरिया गीत मंच पर मिलें, तो कलाकार। और जब किसी विकास कार्य का शिलान्यास करते दिखें, तो एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि।
यह बहुपरती पहचान ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। वे अपने मतदाताओं को अलग-अलग कोनों से जोड़ते हैं। बच्चे उन्हें गायक के रूप में जानते हैं, बुजुर्ग उन्हें ‘बेटा’ मानते हैं, और महिलाएँ उन्हें ‘अपनेपन’ का प्रतीक।

निष्कर्ष: एक नेता, एक कलाकार, एक उम्मीद

लौरिया विधानसभा की कहानी केवल एक क्षेत्र की राजनीतिक यात्रा नहीं है, यह उस सामाजिक बदलाव की झलक है जहाँ एक कलाकार, जननेता बन जाता है। विनय बिहारी की कहानी भावनाओं, संघर्षों और जनसेवा की मिश्रित कहानी है। उनकी लोकप्रियता इस बात का प्रतीक है कि जब नेता जनता की भाषा बोलता है, उनके साथ हँसता-गाता है, तो वह ‘वोट’ से कहीं अधिक ‘दिलों’ को जीत लेता है।
अब यह देखना होगा कि विनय बिहारी आने वाले समय में अपनी इस लोकप्रियता को किस तरह विकास के ठोस आयामों में बदलते हैं—ताकि लौरिया केवल एक राजनीतिक क्षेत्र न रहे, बल्कि एक प्रगतिशील, आत्मनिर्भर और समावेशी समाज का उदाहरण बन सके।
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